Friday, October 7, 2016

खुजली खाल और लघु उद्योग (कटाक्ष)

            जब मैं छोटा बच्चा था बड़ी शरारत करता था, ये बात सभी बच्चो पे फिट नहीं बैठती है जैसे की मैं। तो बात तब की है जब मैं छोटा बच्चा था और स्कूल में पढ़ता था। उस समय हम लोगों को डॉट पेन, बाल पेन से लिखना मना होता था और जेल पेन का आगाज़ नहीं हुआ था। निब पेन से लिखते थे हम लोग जिसे फाउंटेन पेन या इंक पेन भी बोलते हैं । उस पेन की खासियत ये होती थी की उसमे हम लोग स्याही भर सकते थे। फिर बाल पेन और जेल पेन के आने से उसका उपयोग काफी कम हो गया, और अब मुझे लगता था की वो पेन और स्याही बनाना अब लघु उद्योग की श्रेणी में ना आ गया हो। लेकिन इस कलयुग में एक मसीहा ने जन्म लिया जिसकी वजह से इस उद्योग को नया जीवन मिला। उस देवता का नाम है खुजली वाल...... 

            आप लोग सोच रहे होंगे की मैं क्या बोल रहा हूँ। लेकिन जो सत्य है वो सत्य है और उस सत्य को लिखने से न मैं डरता हूँ और ना मेरा कीबोर्ड। अब फिर से पब्लिक ने इंक पेन और उसकी स्याही खरीदना शुरू कर दिया है कि ना जाने कब कहाँ उन्हें देव पुरुष खुजली खाल मिल जाये और उन्हें फैंकने के लिए इंक पेन में भरी इंक की जरूरत पढ जाये। खुजली खाल की इस महान उपलब्धि के लिए मैं उनका तहे दिल से धन्यवाद करता हूँ। बल्कि मैं तो यह भी चाहता हूँ कि उनकी ख्याती और बढ़े और जिस प्रकार उन्होंने इंक उद्योग में आमूलचूल  क्रांति लाई है उसी प्रकार वो गोबर उद्योग में भी नयी क्रांति के जनक बने। जिससे इंक की जगह गोबर का भी प्रयोग किया जा सके। मैं तो कहता हूँ की केवल गोबर उद्योग ही क्यों और भी जानवर है गाय भैंस के अलावा, उन्होंने कौन सा अपराध किया हैं। उनके अपशिष्ट पदार्थ के संरक्षण को भी उद्योग बना के जानवरों में किये जा रहे भेद भाव के निवारण में भी वो सृजनात्मक परिवर्तन करें। 

            मुझे पूरा यकीन है की जिस तरह वह सफलता की नित नए नए आयाम छू रहे है मेरी इच्छाओं पे भी वो शीघ्र ही खरे उतरेंगे। 
  

Friday, February 8, 2013

An Event called Race-2 (Esp for those who are planning to watch)

This event had so much impact on my life that it made me write my experience with this movie. For this I want to give my sincere fu****g thx to my lovely fu****g friend John Robinson who made me to spent my fu****g money and fu****g time and that too against my fu****g will. F**K you john Robinson and rest of friends enjoy reading my fu****g experience..

The lengthiest movie, I have ever seen, is RACE-2. It lasted for seven hours, three hours before interval and four hours after that (or at least it felt like that to me). Your heartbeats gradually decreases as the movie progresses and time stands frozen as it approaches to the end, you will find that you are not breathing at all. It will leave you with no emotion of happiness, sorrow, fear, anxiety etc. This flick will traumatize you and neutralize your senses to the extremity. If you continue to concentrate on movie, I guarantee, your soul will depart to meet Absolute Being and you will explore MOKSHA. But suddenly you will feel conscious and existing when you see credits rolling at the finish.

 While watching the movie, first time in my life, in terms of technologies, I felt like I am the most foolish creature of all time and the omnipotent and omniscient crew of the film is the most advanced seeds of the Universe. Though I was never an admirer of Fernandez (I mean her face) but in the mean time I find my lust towards Deepika is also diminishing.

After watching the movie one and only one thought is striking in my mind again and again i.e. “Mai ameer jyada hu ki ch***a jo yeh picture dekhne gaya”. And after contemplating for hours and hours,I came to the conclusion that “ Saifu bhaiya ye race tumhari hi thi aur tumhari hi rahegi, mai to is race me kabhi tha hi nahi.”

                                                                                                                     Copyright: Avanish Kumar

Sunday, June 17, 2012

गुलाल कर लेते


उनकी मोहब्बत से अपनी दुनिया गुलाल कर लेते
उनके हर ख़याल को  जीवन का अहम् सवाल कर लेते
एक बार तो हिम्मत कर के कुछ  कहा होता सनम ने
उनके  लिए तो हम पूरी दुनिया से बबाल कर लेते...............अवनीश ..

Thursday, June 14, 2012

मै तुम्हे डूब के चाहूँगा और मर भी जाऊंगा

मै तुम्हे डूब के चाहूँगा और मर भी जाऊंगा।
मेरी जिंदगी मेरी अपनी है किसी की उधार नहीं॥

ये घर-ये शहर, ये हवा- ये फिजा, धरती -चाँद -सितारे।
सब मेरे अपने है, तेरे होने से मुझे कोई सरोकार नहीं॥

सांसो का मिलना, दिल का धड़कना और तन्हाई में तड़पना।
तुम नहीं समझोगी, ये कुछ और है व्यापार नहीं॥

मत सोच की चाहती है, देखती है, ढूड़ती है हर पहर तुझे।
हरक़ते ही ऐसी है इन आँखों की, ये तेरी दीदार की तलबगार नहीं॥

हँसता हूँ, मुस्कुराता हूँ, चेहरे पे चमक रहती है।
भ्रम में मत रह, ये तेरी मोहब्बत का खुमार नहीं॥

जितना भी चाहो, कोशिशे कर लो, ज़हन से मिटा ना पाओगी।
मैं पत्थर की लकीर हूँ, कागज़ पे छपा अखबार नहीं॥

सीने से लगाये फिरता हूँ, आज तक तस्वीर तेरी।
ये भी सच है मगर, की अब मुझे तुझसे प्यार नहीं॥

अभी जिन्दा हुँ

हंसा लो मुझको, रुला लो मुझको,
अभी जिन्दा हुँ, सता लो मुझको।

देखूंगा ना बोलूंगा, रूठा ही रहूँगा,
अभी जिन्दा हुँ, मना लो मुझको,

किसने देखा है, खुद को फ़ना होते,
अभी जिन्दा हुँ, जला दो मुझको।

धडकनें रुकी, तो पलक न खुलेगी,
अभी जिन्दा हुँ, रुला लो मुझको।

मोहब्बत है, या इंकार है तुमको,
अभी जिन्दा हुँ, बता दो मुझको।

जो हुआ सो हुआ, गलत या सही,
अभी जिन्दा हुँ, सजा दो मुझको।

गर गया दूर तो, याद बहुत आउँगा,
अभी जिन्दा हुँ, भुला दो मुझको।

Thursday, August 25, 2011

क्या ख़ूब खिलाड़ी है सनम मेरा...

मेरे क़त्ल कि सज़ा भी मुझे ही मिली,
क्या ख़ूब खिलाड़ी है सनम मेरा...

उसे भी शक़ है और मुझे भी यकीं है,
कि उसी के लिये हुआ है जनम मेरा....

मौत के दामऩ मे लिपट कर भी जिन्दा हूँ,
कुछ यूँ मशहूर है जहाँ में सितम तेरा....

साथ भी है, दूर होने का अहसास भी है,
इस क़दर फूटा है ये करम मेरा....

बहुत देर से मिटती है पत्थर पे लिखी तहरीरें,
इसकी जिन्दा मिशाल है तेरी तस्वीर और ज़हन मेरा...

कलियाँ मुरझाती है और फूल जल उठते है,
इस तरह उजड़ा है ये चमन मेरा..

जमीन नयी लगती है आसमान जुदा लगता है’
तेरे इश्क़ मे बिछड़ा है मुझसे वतन मेरा...

कुछ आग़ाज़ अब भी है बाकि, कि यही अन्ज़ाम था,
ऐ ख़ुदा कैसे भी कर किस्सा खतम मेरा...

Monday, July 18, 2011

जिया मे आग लगाती हो, जिया मे आग लगाती हो....

बिंदिंया लगाती हो, काजल लगाती हो,
पाँव मे पायल, कानों मे झुमके लटकाती हो,
उस पर काली जुल्फ़ो मे गजरा महकाती हो,
सोलह श्रृंगार से जब खुद को सजाती हो,
                                                       जिया मे आग लगाती हो ||
                                                       जिया मे आग लगाती हो ||

झुका के सर को माथे पे लट लटकाती हो,
अँगुलियां उनमे फेर के, फिर उन्हे हटाती हो,
अन्जाने मे पर्दा गिराती हो, पर्दा उठाती हो,
हुस्न के ज़लवे जब अदाओं से दिखाती हो,
                                                      जिया मे आग लगाती हो ||
                                                      जिया मे आग लगाती हो ||

ख़ुदा ही जाने कि तुम देखती हो या तीर चलाती हो,
कहॉं से सीखा है ये जो शब्द-भेदी बाण चलाती हो,
अक्सर जब पलकें उठाती हो, तो नज़रें चुराती हो,
मगर पलकें झुका के जब नज़रों को मिलाती हो,
                                                      जिया मे आग लगाती हो ||
                                                      जिया मे आग लगाती हो ||

कभी तुम गुनगुनाती हो, कभी हंसती हंसाती हो,
कभी अनकहे शब्दों से, मन का ऑंगन महकाती हो,
और कभी कह के कुछ शब्द, ख़्यालों मे बस जाती हो,
इश्क, मोहब्बत, प्यार जब तुम बतियाती हो,
                                                      जिया मे आग लगाती हो ||
                                                      जिया मे आग लगाती हो ||