मेरे क़त्ल कि सज़ा भी मुझे ही मिली,
क्या ख़ूब खिलाड़ी है सनम मेरा...
उसे भी शक़ है और मुझे भी यकीं है,
कि उसी के लिये हुआ है जनम मेरा....
मौत के दामऩ मे लिपट कर भी जिन्दा हूँ,
साथ भी है, दूर होने का अहसास भी है,
इस क़दर फूटा है ये करम मेरा....
बहुत देर से मिटती है पत्थर पे लिखी तहरीरें,
इसकी जिन्दा मिशाल है तेरी तस्वीर और ज़हन मेरा...
कलियाँ मुरझाती है और फूल जल उठते है,
इस तरह उजड़ा है ये चमन मेरा..
जमीन नयी लगती है आसमान जुदा लगता है’
तेरे इश्क़ मे बिछड़ा है मुझसे वतन मेरा...
क्या ख़ूब खिलाड़ी है सनम मेरा...
उसे भी शक़ है और मुझे भी यकीं है,
कि उसी के लिये हुआ है जनम मेरा....
मौत के दामऩ मे लिपट कर भी जिन्दा हूँ,
कुछ यूँ मशहूर है जहाँ में सितम तेरा....
साथ भी है, दूर होने का अहसास भी है,
इस क़दर फूटा है ये करम मेरा....
बहुत देर से मिटती है पत्थर पे लिखी तहरीरें,
इसकी जिन्दा मिशाल है तेरी तस्वीर और ज़हन मेरा...
कलियाँ मुरझाती है और फूल जल उठते है,
इस तरह उजड़ा है ये चमन मेरा..
जमीन नयी लगती है आसमान जुदा लगता है’
तेरे इश्क़ मे बिछड़ा है मुझसे वतन मेरा...
कुछ आग़ाज़ अब भी है बाकि, कि यही अन्ज़ाम था,
ऐ ख़ुदा कैसे भी कर किस्सा खतम मेरा...
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